Friday, April 4, 2025

श्रमशील जीवन की गाथा – सर एम. विश्वेश्वरैया

🔱 एक प्रेरणादायी जीवनगाथा

वह समय भी अजीब था, जब भारत अपनी पहचान ढूंढ रहा था, और एक युवक — विश्वेश्वरैया — अपने भीतर के देवत्व को जाग्रत कर रहा था। उसकी आंखों में सपना था — ज्ञान का, सेवा का, निर्माण का।

🕉️ स्वाभिमान से भरी शुरुआत

उच्च शिक्षा के लिए बंगलुरु जाना था। लेकिन माँ चिंतित थीं, “काकाजी की हालत ठीक नहीं।” विश्वेश्वरैया ने जवाब दिया — “मैं बोझ नहीं बनूंगा माँ, अपने खर्च खुद उठाऊंगा। बस रहने की जगह चाहिए।” माँ ने आशीर्वाद दिया और बेटे ने तपस्या की तरह शिक्षा को अपनाया।

📖 अध्ययन की साधना

साल भर कॉलेज, लाइब्रेरी और कठिन परिश्रम। एक क्षण भी व्यर्थ न जाने देने वाला वह युवक, प्राचार्य चार्ल्स क्रॉट्स का प्रिय विद्यार्थी बन गया। कभी-कभी वे उसे अचानक कहते, “अब आगे तुम पढ़ाओ!” और वह पूरी तत्परता से कक्षा संभाल लेता।

🌍 एक भावुक पुनर्मिलन

प्राचार्य के सेवानिवृत्ति के बाद वे इंग्लैंड चले गए। वर्षों बाद उनकी पत्नी भारत आईं। “मेरे पति की अंतिम इच्छा थी कि ये स्वर्ण कफलिंक तुम्हें दूं,” उन्होंने कहा। विश्वेश्वरैया की आंखें नम हो गईं, पर हृदय और भी मजबूत हो गया।

🏛️ कर्मयोग का शिखर

एक अभियंता के रूप में उन्होंने भारत को बांधों, पुलों और आधुनिक विकास की नींव दी। उनका जीवन साधना था, और हर कार्य, यज्ञ। उनके बनाए कार्य आज भी बोलते हैं — जैसे कोई ऋषि मंत्रोच्चार करता हो।

🏵️ अंतिम सम्मान

भारत सरकार ने उन्हें ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया। उनके नाम का डाक टिकट निकाला गया। वह कहते थे — “मैं शिजूंगा, पर गंजूंगा नहीं।” यह नारा नहीं, उनका जीवन-सूत्र था।

🌟 बोध – जीवन को गंजने मत दो!

अब निर्णय आपका है — क्या आप स्वयं को जंग लगने देंगे, निष्क्रियता से अपने जीवन को भंगार बनाएंगे? या फिर सतत कर्म करते हुए अपने जीवन को सोने की तरह चमकाएंगे?

💡 नैतिक संदेश:

जो निरंतर कर्म करता है, वही जीवन को दिव्यता प्रदान करता है।
याद रखें – "सच्चा तप वही है, जो स्वार्थरहित हो।"


📌 पांच विशेष प्रश्न और उत्तर:

  1. प्रश्न: विश्वेश्वरैया की सबसे बड़ी प्रेरणा क्या थी?
    उत्तर: आत्मनिर्भरता और राष्ट्रसेवा की भावना।
  2. प्रश्न: उन्होंने बंगलुरु क्यों जाना चाहा?
    उत्तर: उच्च शिक्षा के लिए।
  3. प्रश्न: ‘मैं शिजूंगा, पर गंजूंगा नहीं’ का क्या अर्थ है?
    उत्तर: मैं जीवन में श्रम करूंगा, पर कभी निष्क्रिय नहीं बनूंगा।
  4. प्रश्न: प्राचार्य की पत्नी क्यों भारत आईं?
    उत्तर: स्वर्ण कफलिंक विश्वेश्वरैया को देने के लिए।
  5. प्रश्न: इस कथा से हमें क्या सीख मिलती है?
    उत्तर: सतत परिश्रम, विनम्रता और राष्ट्र के प्रति समर्पण।

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